Friday, September 4, 2009

सत्यकाम, भैंसे की सवारी और यमराज......

मेरे नश्वर पाठक,

आज ठान कर बैठा हूँ कि इस पोस्ट में कुछ नहीं लिखूंगा अपने काम या काम की जगह के बारे में.....

हाँ तो,....उत्तम प्रदेश के एक मंझोले शहर में हेड पोस्ट आफिस में क्लर्क थे पिताजी,तरक्की करते करते कार्यालय अधीक्षक के पद से रिटायर हुऐ, हम सभी बच्चे, चार बहनें और दो भाई,(सबसे बड़ा हूँ मैं)शहर में ही रहे पैदाइश से अब तक.....न पिताजी के पास गांव में कोई मकान था, न जमीन..... गांव से इस प्रकार कोई नाता नहीं रहा था हम लोगों का..... शायद इसी कारण मेरे अनुभव, संवेदनायें, अनुभूतियां आदि नितांत शहरी हैं । बीते छह बरस इस माइने में मेरे लिये अनूठे हैं, अजूबे हैं.....क्योंकि लगभग हर रोज एक नया अनुभव होता है मुझको।

कल जब काम से लौट रहा था घर को.....सुबह क्योंकि बारिश हुई थी, मौसम सुहावना था.....अपनी ही मस्ती में बाइक चला रहा था मैं धीरे धीरे....."ये महलों, ये तख्तों, ये ताजों की दुनिया.." गुनगुनाते हुऐ.....अचानक मैंने देखा कि चले जा रहे थे दो बाप बेटे, अपने डनलप के भैंसों को नहर में नहलाने के बाद.....घर की ओर.....भैंसों की पीठ पर बैठ कर, अचानक जाग पड़ा मेरे भीतर का बाल मन साथ ही एक नया नितान्त अजनबी अनुभव प्राप्त करने का लालच भी, बाइक रोक कर किनारे लगाई और बोला मैं उस डनलप वाले से....."थोड़ी दूर तक मुझे भी बैठ कर देखने दो यार", पहचानता था वो मुझको.....एकदम चौंक सा गया वो मेरे अनुरोध से....."क्या कहते हैं डागदर साहब, काहे कपड़ा गन्दा करेंगे अपना? ".....बहुत समझाने के बाद तैयार हुआ फिर वो ।


उसके गांव के मोड़ तक यानी तकरीबन २०० मीटर तक भैंसे के ऊपर बैठा फिर मैं.....भैंसे पर जब आप बैठते हैं तो पीठ के बीच में नहीं, बैठना होता है थोड़ा पीछे की ओर, पकड़ने के लिये कुछ नहीं होता चाहें तो उसकी कूल्हे की हड्डी के उभार को पकड़ सकते हैं.....दूसरी विशेष बात यह कि खुद की इस वल्नरेबल पोजीशन के कारण आप उसे ज्यादा हांक नहीं सकते.....नहर में जमकर नहाने के आनन्द में,हौले हौले जुगाली करता हुआ.....चलेगा वह अपनी ही मस्ती में.....कहां जाना है, उसे पता है,.....कैसे जाना है, उसे ज्ञात है.....और जाने में कितना समय लगेगा, यह निर्णय भी भैंसे का ही है । आपने यदि यह अनुभव नहीं लिया अभी तक तो एक बार जरूर लें.....

भैंसे की इस सवारी के बाद ही समझ आया कि क्यों हम लोगों में यमराज को भैंसे की सवारी करता माना गया है.....बात कुछ यों है.....इधर हम में से कोई आया इस धरती पर, और उधर उस लोक से चल पड़ा एक भैंसा भी उसकी ओर..... अब भाग बेटा भाग.....महल बना,अट्टालिकायें बना, प्रापर्टी जोड़, हर दरवाजे पर बैठा दे गार्ड.....और भाग.....सुबह शाम दौड़ लगा,जिम में जा, ओरगेनिक फूड खा, छोड़ सेचुरेटेड फैट्स को, दूर रह मांस-शराब-सिगरेट से, खूब कर अनुलोम विलोम और कपाल भाती.....भाग और तेजी से.....हर साल करा हेल्थ चेकअप, सारे बायोकैमिकल पैरामीटर रख काबू में,बीमार हो तो जा दिखा सुपर सुपर स्पेशलिस्टों को, ले लेटेस्ट इविडेंस बेस्ड ट्रीटमेंट ही......भागता ही रह.....स्पा में जा, एक्यूपंचर करा, फेस लिफ्ट करा, कर टमी टक, बोटोक्स लगा, करा हेयर ट्रान्सप्लांट......फिर भागम भाग.....हार्ट अटैक हो तो करवा स्टैंटिंग, बाई पास, डबल बाई पास, रिपीट बाई पास ..... भाग ले जितना भाग सकता है तू , पर याद रख ..... जिस दिन जागेंगे तेरे भाग.....सिरहाने पर खड़ा होगा यही भैंसा, पीठ पर यम को बिठाये.....न भागने को कोई जगह बचेगी और न भागने का दम होगा उस दिन तुझमें !

फिलहाल तो मैं भी भागता हूँ, सुबह की २० मिनट की दौड़ जो लगानी है मुझे.............

3 comments:

  1. मजा आ गया डगडर साहेब।
    'डग' माने रास्ता
    'डर' माने डर और का? आप को डग से डर नहीं लगता तभी तो बाइक रोक भैंसा चालन कर रहे हैं।

    यमराज की सवारी का अच्छा विश्लेषण।

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  2. ....."थोड़ी दूर तक मुझे भी बैठ कर देखने दो यार", पहचानता था वो मुझको.....एकदम चौंक सा गया वो मेरे अनुरोध से....."क्या कहते हैं डागदर साहब, काहे कपड़ा गन्दा करेंगे अपना? ".....बहुत समझाने के बाद फिर तैयार हुआ फिर वो ।

    Ha-Ha-Ha-Ha. वैसे भी डागदर के दो रूप माने जाते है हमारे यहाँ, एक भगवान् का रूप और दूसरा यमराज का ! चलो आपने सवारी करके एक ख्वाइश तो अपनी पूरी की ! :-))

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  3. पोस्ट बिन्दास है, पर
    हे यमराज सहोदरः तेरी विवेचना में इतना धमकात्मक सत्य क्योंकर निहित है ?

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आपका अपना ही..... सत्यकाम ।