Tuesday, August 25, 2009

सत्यकाम का ट्रेक्टर और उसेन....

हाँ तो ,प्रिय पाठक ,

मैंने वादा किया था बताने का, ट्रेक्टर और उसेन के बारे में....

५ बरस पहले मैंने विवाह किया, अंतरजातीय विवाह है यह, हुआ यों कि, ६ बरस पहले मैं दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में सीनियर रेजिडेंसी कर रहा था और कमीशन के अपाइंटमेन्ट लैटर के इंतजार में था तभी एक शादी में जाना हुआ, उस शादी में दिख रही सबसे खूबसूरत बला को देख कर मुझसे रहा न गया, सीधा उसके पास गया और बोला " हलो मैं डॉ० सत्यकाम, मुझसे शादी करोगी?" शरमा के भाग गई वो उस वक्त परंतु बाद में उसने मुझे ढूंढ निकाला, १ साल तक हमारी कोर्टशिप चली और फिर उसके मां बाप की अनिच्छा के बावजूद शादी..

टेलिफोन विभाग के बड़े अफसर हैं मेरे ससुर जी, दो भाइयों की अकेली बहन है वो.. आज पूछता हूँ तो कहती है कि मेरी intellect से प्रभावित होकर उसने मुझे चुना। MCA किया है उसने, शादी से पहले TCS में १८००० रु० प्रति माह की नौकरी पर थी , अब फुल टाइम होम मेकर है...

तो इस बंगालन बला का नाम है ' सोनालिका ' अब देहात में इस नाम का एक ट्रेक्टर भी आता है शुरु में मैंने मजाक मजाक में उसे ट्रेक्टर कहना शुरू किया फिर धीरे धिरे यह नाम जबान पर चिपक गया...उसे भी कोई एतराज नहीं है...

अब आते हैं ' उसेन' पर,एक बेटा है मेरा ३ साल का... बड़ी इच्छा है मेरी कि वो एक बड़ा खिलाड़ी बने। अभी तक तीन बार नाम बदल चुका हूँ उसका सबसे पहले TIGER WOODS के नाम पर टाइगर, फिरCHRISTIANO RONALDO के नाम पर रोनाल्दो और आजकल USAIN BOLT के नाम पर 'उसेन'..

अस्पताल में आज माया मुश्किल में फंस गई थी एक प्रसूता आई दर्द में, बच्चा दानी का मुँह पूरा खुला हुआ, बच्चा बिल्कुल नीचे पर वह बच्चे को नीचे धकेलने लायक जोर नहीं लगा पा रही थी...मैंने जाकर देखा.. एनीमिक थी...उपर से जब से दर्द उठे सास ने न कुछ खाने दिया न पीने... काफी समय लगा उसे स्टेबल करने में... फिर रिफर कर दिया जिला अस्पताल को। आज इतना ही , फिर मिलते हैं...

5 comments:

  1. बहुत मजेदार डॉ साहेब..

    लगे रहीये..

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  2. आपका ब्लॉग जगत में आने पर स्वागत है... ब्लॉग्गिंग आपके विचारों को जरिया प्रदान करती है... हम पहले बहुत कम संख्या में थे अब धीरे-धीरे बढ़ रहे हैं... ख़ुशी की बात है....
    फिर से आपका स्वागत...

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  3. बढ़िया है डॉक्टर साहब !!

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  4. डॉ सत्यकाम

    आपका स्वागत है।उम्मीद है आप और लिखेंगे। इस दुनिया तक हम सबको ले जायेंगे।
    रवीश कुमार
    एनडीटीवी इंडिया

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  5. ई डाक्टर लोग इतने दिलफेंक क्यों होते हैं ?

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